रासलीला या कृष्ण लीला  में, युवा और बाल कृष्ण  की गतिविधियों का  मंचन किया जाता है।

रासलीला/कृष्ण लीला

कान्हा की मुरली का  जादू ऐसा था कि  गोपियां अपना सौंदर्य  खो देती थीं।

गोपियों के सुध बुध  खोते ही कान्हा के  सखाओं की शरारत  शुरू हो जाती थी।

माखन चुराना,  मटकी फोड़ना,  गोपियों के वस्त्र चुराना,

कान्हा के इन सभी टोटकों को एक सूत्र में बांधकर रासलीला या कृष्ण लीला खेली जाती है

अर्थात उन्हें गायन  व नृत्य के माध्यम से नाटकीय रूप  दिया जाता है।

श्रीकृष्ण की रासलीला का  आनंद मथुरा, वृंदावन तक सीमित न रहकर पूरे  देश में फैल जाता है।

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