चतुर्थी तिथि 10 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 09 मिनट सेशुरू होगी
11 जनवरी को दोपहर 02 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी।
सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय- रात 08 बजकर 41 बजेहोगा।
इसी समय चंद्रमा को अर्घ्यदिया जाएगा और व्रत को खोला जाएगा।
- प्रातःकाल स्नान करके गणेश जी की पूजा का संकल्प लें।
- इस दिन फलाहार ही करना चाहिए।
- संध्याकाल में भगवान गणेश की कथा पढ़ें
- भगवान को तिल के लड्डू और पीलेपुष्प अर्पित करें।
- भगवान गणेश को दूर्वा भी अर्पित करनी चाहिए।
- चन्द्रमा को अर्घ्य दें
- आरती:
सकट चौथ व्रत में कथा
किसी नगर मेंएक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने
क्या कारण हैकि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा नेराजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित नेकहा, ”हर बार आंवा लगातेसमय एक बच्चेकी बलि देनेसेआंवा पक
जाएगा।” राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपनेबच्चों मेंसेएक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक
बुढि़या के लड़के की बारी आई।
बुढि़या के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढ़िया सोचनेलगी, ”मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो
जाएगा।” तभी उसको एक उपाय सूझा। उसनेलड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ”भगवान का नाम लेकर आंवां मेंबैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।”
सकट के दिन बालक आंवां मेंबिठा दिया गया और बुढ़िया सकट माता के सामनेबैठकर पूजा प्रार्थना करनेलगी। पहलेतो आंवा पकनेमेंकई दिन लग जातेथे, पर इस बार
सकट माता की कृपा सेएक ही रात मेंआंवा पक गया। सवेरेकुम्हार नेदेखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की
कृपा सेनगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों नेमाता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला
आ रहा है।
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